विधानसभा निवडणुकीपूर्वी उद्धव ठाकरे यांनी मराठा आरक्षणाचे कार्ड खेळले, चेंडू पंतप्रधान मोदींच्या अंगणात टाकला आणि भाजपची अडचण वाढवली...

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विधानसभा निवडणुकीपूर्वी उद्धव ठाकरे यांनी मराठा आरक्षणाचे कार्ड खेळले, चेंडू पंतप्रधान मोदींच्या अंगणात टाकला आणि भाजपची अडचण वाढवली...

महाराष्ट्र में पिछले चार दशकों से मराठा आरक्षण की मांग चल रही है. इस बीच तमाम पार्टियों की सरकारें आईं और गईं, लेकिन किसी ने भी मराठा आरक्षण को अमलीजामा नहीं पहनाया. मराठा समुदाय लंबे समय से सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग कर रहा है.

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मी बढ़ने के साथ-साथ मराठा आरक्षण की तपिश भी बढ़ने लगी है. मराठा आरक्षण के आंदोलनकारी अब सभी दलों के नेताओं से प्रत्यक्ष मिलकर मराठा आरक्षण पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग कर रहे हैं. इसी कड़ी में मंगलवार को मराठा प्रदर्शनकारियों ने जब शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात की तो उन्होंने आरक्षण का दांव मोदी सरकार के पाले में डाल दिया. उद्धव ने कहा कि मोदी सरकार आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को बढ़ाने का कदम उठाए, हम साथ हैं.


मराठा आरक्षण को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है. मराठा आरक्षण की अगुवाई करने वाले मनोज जरांगे 29 अगस्त को अपनी सियासी भूमिका पर तस्वीर साफ करेंगे. इस बात को लेकर सस्पेंस बरकरार है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मनोज जरांगे क्या स्टैंड लेगें, लेकिन दूसरी तरफ उनके लोग सियासी दलों से मुलाकात करके मराठा आरक्षण पर नजरिया साफ करने की मांग उठा रहे हैं. इस तरह मनोज जरांगे मराठा आरक्षण पर सभी दलों के स्टैंड देखने के बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका तय करेंगे.


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राज्यों को आरक्षण की सीमा बढ़ाने का कोई अधिकार नहीं: 

उद्धव मराठा आंदोलनकारियों से मुलाकात के बाद उद्धव ठाकरे ने कहा कि राज्यों को आरक्षण की सीमा बढ़ाने का कोई अधिकार नहीं है. पहले बिहार में आरक्षण दिया गया था, उसे कोर्ट ने उड़ा दिया था. इसलिए अगर आरक्षण की सीमा बढ़ानी है तो इस मुद्दे को लोकसभा में ही सुलझाया जा सकता है. मैं इस पर अपना समर्थन देने को तैयार हूं. मराठा और ओबीसी सभी को मिलकर मोदी के पास जाना चाहिए, क्योंकि पीएम मोदी खुद भी कहते हैं कि वह पिछड़ा वर्ग से आते हैं. मोदी सरकार आरक्षण के मामले में जो फैसला करेगी, हम उसे स्वीकार करेंगे. उन्होंने कहा कि मराठा समाज को न्याय मिलना चाहिए, लेकिन इसका समाधान सिर्फ मोदी सरकार ही निकाल सकती है. 

वहीं, बीजेपी एमएलसी पंकजा मुंडे ने कहा है कि महाराष्ट्र के सबसे अनुभवी नेता शरद पवार को मराठा आरक्षण के मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सभी दल खुद को मजबूत बनाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें किसी वजह से साथ आना होगा. राज्य में जो कुछ हो रहा है, उस पर नेताओं को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए. आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे की अपील पर मुंडे ने कहा कि कोई व्यक्ति जो चाहे कह सकता है, लेकिन इन घोषणाओं का तब तक कोई महत्व नहीं होगा, जब तक उन पर अमल नहीं किया जाता है.


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कहीं मणिपुर जैसी स्थिति महाराष्ट्र में भी न हो जाए: पवार
एनसीपी (एसपी) के प्रमुख शरद पवार के बयान पर महाराष्ट्र में सियासी बवाल खड़ा हो गया है. उन्होंने कहा है कि चिंता है कि कहीं मणिपुर जैसी स्थिति महाराष्ट्र में भी न हो जाए. पवार ने कहा कि हाल के दिनों में महाराष्ट्र में भी मणिपुर जैसा कुछ हो सकता है. सभी को जाति-धर्म से ऊपर उठकर एक राष्ट्र बनाने के लिए काम करना चाहिए. उन्होंने राज्य में ओबीसी और मराठा आरक्षण का जिक्र करते हुए ये बात कही थी, क्योंकि आरक्षण को लेकर दोनों ही समुदाय एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं. महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लोग ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण की मांग कर रहे हैं. इसे लेकर ओबीसी समुदाय के विरोध में खड़े हैं. ओबीसी समुदाय का कहना है कि मराठा समाज को अलग से आरक्षण दिया जाना चाहिए, ओबीसी कोटे के तहत नहीं. इसी बात को लेकर शह-मात का खेल जारी है. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जिस तरह मराठा समाज आरक्षण की मांग को लेकर सियासी दलों से स्टैंड साफ करने की बात कर रहे हैं, उसके जरिए उनके सियासी थाह लेने की स्ट्रैटजी है.

उद्धव और शरद दोनों कर रहे हैं ये पैरवी

महाराष्ट्र में मराठों की आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है. राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 20 से 22 सीटें और विधानसभा की 288 सीटों में से करीब 100 सीटों पर मराठा समाज निर्णायक माना जाता है. मराठाओं की पहली पसंद एनसीपी रही है. जबकि दूसरे नंबर पर शिवसेना और तीसरे नंबर पर कांग्रेस आती है. शिवसेना के दोनों धड़े मराठा समर्थक माने जाते हैं, क्योंकि सीएम एकनाथ शिंदे खुद मराठा समुदाय से आते हैं. बीजेपी महाराष्ट्र में शुरू से ओबीसी की सियासत करती रही है, लेकिन 2014 के बाद से मराठा वोटों पर खास फोकस किया है.

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राज्य के गठन के बाद से अब तक 13 मराठा सीएम हुए हैं, जबकि ब्राह्मण के तौर पर केवल दो सीएम शिवसेना के मनोहर जोशी और बीजेपी से देवेंद्र फडणवीस बने. महाराष्ट्र में जिस तरह मराठा समुदाय ने आरक्षण की मांग उठाई है, उसे उद्धव ठाकरे केंद्र की मोदी सरकार के पाले में डालने की कवायद में हैं और शरद पवार ने चुप्पी अख्तियार कर रखी है. उद्धव और शरद पवार दोनों ही आरक्षण का दायरा बढ़ाने की पैरवी कर रहे हैं, जिस पर बीजेपी किसी भी रूप से तैयारी नहीं होगी.


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मराठों पर टिकी है शरद पवार की राजनीति

महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा मराठा समाज के लोग पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में रहते हैं. ऐसे में निश्चित रूप से इसका राजनीतिक फायदा भी शरद पवार और उद्धव ठाकरे को मिलना है. शरद पवार की राजनीति पूरी तरह से मराठों पर टिकी है. इसीलिए उनका आधार मराठावाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र के जिलों में है. 2024 चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है, जिसके चलते एनडीए सिर्फ 17 लोकसभा सीट पर सिमट गई और इंडिया गठबंधन 30 सीटें जीतने में सफल रहा.

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